Thursday, 12 November 2015

प्रतीक्षा (waiting for his shelter)

आज मंगल बहुत खुश था ,खुश होने की वजह भी थी आज मंगल का जन्मदिन है वह अपने ७० वें वर्ष में कदम  रहा है। मंगल एक जिंदादिल इंसान था चेहरें पर झुर्रियां थी बाल सफेद हो गए थे दांत लगभग गायब  चले थे फिर भी वह स्वास्थ्य के मांमले में बहुत सौभाग्यशाली था उसे कोई  बीमारी ना थी मंगल की दो संतानें  थी एक लड़का प्रशांत और लड़की पूजा। लड़की अमेरिका में थी उनका दामाद अमेरिका के एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊँचे पद पर था, लड़का  डॉक्टर था जो की दिल्ली में पदस्थापित था मंगल की बहु भी डॉक्टर थी। काफी मुश्किलो से मंगल ने अपने  संतानो को पढ़ाया लिखाया था वह बेचारा गैराज में मैकेनिक  का काम करता था वो और उसकी पत्नी वशुंधरा ने अपना पेट काट- काट कर बच्चों का पालन पोषण किया था और उनको इतनी अच्छी तालीम दी थी। मंगल और वशुंधरा के घर में  सब कुछ ठीक- ठाक चल रहा था बड़े  हँसी ख़ुशी के माहौल में दोनों संतानो की शादी  की गयी थी, अच्छा दामाद और अच्छी बहु पाकर दोनों फूलें नहीं समां रहे थे। अचानक ३ साल पहले पत्नी वशुंधरा का हृदयाघात से देहांत हो गया बेचारे मंगल को बहुत बड़ा सदमा लगा बेचारा अलग थलग सा पड़ गया। कुछ दिन तो ऐसे ही बीत गए एक दिन उसके बेटे प्रशांत ने अपने पिताजी से कहा की उसका ट्रांसफर शहर से दूर दिल्ली में हो गया है उसकी पत्नी ने भी ट्रांसफर वही करवा  लिया है और उसे अभी रहने के लिए घर नहीं मिला है इसीलिए वह  मंगल  को अपने साथ  नहीं ले जा पा रहा है यहाँ देखभाल नहीं हो पाने के  कारण उनका दाखिला वो वृद्धा- आश्रम में करवा रहा है। मंगल को यह बात समझ में नहीं आ रही थी की जहाँ दो लोगो जगह हो  रही है वहां तीन लोग कैसे नहीं रह सकते है ,फिर भी वह अपने  बेटे के आग्रह  को टाल नहीं पाया  और चुपचाप अपनी सहमति दे दी। मंगल ने ये बात अपनी बेटी पूजा  को भी बताई पर पूजा ने भी इस मुददे पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी। अगले ही दिन मंगल को उसके पुराने सामानो के साथ वृद्धा-आश्रम में व्यवस्थित कर दिया गया और प्रशांत ने  आश्वाशन भी  दिया की वह हर छुट्टी में उनसे मिलने आएगा और हमेशा फ़ोन पर उनसे बात करेगा। और यह कहकर प्रशांत मंगल के डबडबाई आँखों से  ओझल हो गया। कुछ दिन  बाद प्रशांत उनसे  मिलने आया और कुछ महीनो तक वह हरेक छुट्टी के दिन अपने पिताजी  मिलने आता था। फिर उसने बताया की उसे घर मिल गया है और उन्हें उनके जन्मदिन के दिन उन्हें वहां से अपने घर ले जाएगा। ये  बात सुनकर मंगल की  ख़ुशी  ठिकाना नहीं रहा जन्मदिन के दिन उसने पुरे वृद्धा-आश्रम में मिठाइयां बाँटी और अपने बेटे का आने का इन्तेजार  करने लगा इन्तेजार करते करते शाम हो गयी पर प्रशांत नहीं आया।  फ़ोन भी उसका बंद  था शायद उसने नंबर बदल लिया था। तब से मंगल हरेक  जन्मदिन में अपने बेटे का इन्तेजार करता है इसी आशा में की शायद कभी उसे अपने बूढ़े बाप की याद जाए इस जन्मदिन पर भी वो रात के १० बजे तक गेट के सामने बैठकर इन्तेजार करता रहा और यह  सोचता रहा की वह तो बहुत गरीब था और पढ़ा लिखा भी नहीं था फिर भी अपने माँ-बाबूजी से अलग नहीं रहा फिर उनका बेटा इतना पढ़ा-लिखा होने के बाद भी उससे अलग कैसे रह सकता है क्या आधुनिक शिक्षा में माँ -बाप से अलग रहना सिखाया जाता है क्या !


जिन्हे समझते थे हम मुकद्दर अब वो जमीं भी न रहा ,

जिनकी पैरो में जन्नत थी अब उनका कोई  आसरा भी ना रहा.

Thursday, 5 November 2015

सफलता के मायने (PILLARS OF SUCCESS)




सपने वो नहीं जो हम बंद आँखों से देखते है ,
सपने वो है जो हमें सोने नहीं देती है।

यह वाक्य हमारे पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन श्री ए.पी जे अब्दुल कलाम जी की है। जिसे हम सभी को अपने जीवन में  उतारना चाहिए ,अक्सर हम अपने आम जीवन में देखते है की बहुत सारे लोग आगे बढ़ने के लिए या कामयाब होने के लिए बहुत सारे सपने बुनते है पर उसको धरातल में लाने के लिए वैसा जी -तोड़ प्रयास नहीं करते है जिसके सहारे वो कामयाब हो सके। लोग सपने तो बहुत बड़े-बड़े देखते है पर उसे पूरा करने के लिए जो लगन और साहस की जरुरत होती है वो जुटा नहीं सकते है। हमें कामयाबी पाने के लिए उन पंक्षियों के बारे में सोचना चाहिए जो सुबह उड़ान भरने के पहले रात में सपने नहीं देखते है बल्कि सुबह पुरे जोश के साथ उड़ान  भर देते है। इस पुरे प्रकरण को हम एक कहानी से जोड़ पाएंगे जिसमे दो दोस्त जॉन और जिमी मिलकर साइकिल की फैक्ट्री डालते है ,पहला दोस्त जिसके पास बहुत सारे आईडिया थे और दूसरा जो बहुत मेहनती था। पहला सिर्फ सपने बुनता था और दूसरा अपनी मेहनत से उसे पूरा करता था। कुछ दिन के बाद  पहले दोस्त ने सोचा की मेरे पास तो इतने सारे आईडिया और सुझाव है तो मैं वो आईडिया दुसरो को क्यों दूँ क्यों ना मैं अपना व्यापार शुरू करूँ। ये सोचकर उसने अपना अलग साईकिल का व्यापार शुरू किया पर वह ये भूल गया था की उसकी सपनो को उड़ान देने वाला उसके आईडिया  साकार करने वाला उसका दोस्त जिमी था। जॉन के पास आईडिया तो थी पर उसको धरातल पर  लाने के लिए  जज़्बा और मेहनत लगती है वो उसके पास नहीं था। नतीजा यह हुआ की जॉन का व्यापार धीरे-धीरे मंदा होने लगा और कुछ दिन बाद उसे अपना कारखाना बंद करना पड़ा। और दूसरा दोस्त जिमी जिसके पास सपने कम थे पर वह जोश और मेहनत से लबरेज था ने धीरे धीरे व्यापार को आगे बढ़ाया और आज वह एक सफलतम बिजनेसमैन है। इसीलिए दोस्तों सपने देखना एक अच्छी  आदत है पर हमलोगो को उसे साकार करने का भी पूरा हौसला रखना  पड़ेगा तभी सफलता हमारी कदम चूमेगी।


  • सपने वही सच होते है जिसके पीछे लगन और  मेहनत हो। 
  • अगर सपनो की उड़ान देखनी है तो अपने पंख यानि की सोच को फैला कर रखना होगा

Monday, 28 September 2015

ठगी हुई ममता


जागृति  जो की घर घर झाड़ू बर्तन  का काम करती है ने २०० रुपए  महीने का आवर्धिक जमा (R.D ) पोस्ट ऑफिस में  करवाया था। जागृति के पति का निधन  उस  समय हो गया था जब उसके ३ बच्चे जगन ,मोहन और राधिका बहुत छोटे थे।  बेचारी इतना पढ़ी लिखी भी नहीं थी की अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सके  काफी कोशिशों के बाद भरण पोषण होता था। अब तो जागृति के बच्चे भी बड़े हो गए थे अब वो भी थोड़ा बहुत कमा के लाते थे बेटी भी  बड़ी हो रही थी जिसकी शादी के लिए जागृति ने पोस्ट ऑफिस में (R D) करवाया था। पढ़ी लिखी न होने के कारण बड़ा बेटा जगन ही पोस्ट  ऑफिस में पैसे  जमा करता था। जागृति अपनी कमाई जो की बमुश्किल से १५०० रूपए  की थी  में से २००  रूपए बचाकर अपने बेटे  जगन को जमा करने के लिए देती   थी। कुछ साल बाद बेटी राधिका के लिए  बहुत  अच्छा रिश्ता आया लड़का सरकारी  स्कूल में चपरासी  था  दहेज़ की भी कोई मांग न  थी। जागृति आज बहुत  खुश थी पर उसको एक चिंता भी थी की शादी का  खर्चा  कहा से आयेगा। सहसा उसे याद आया की उसने पोस्ट ऑफिस में R D करवाया हुआ है ,उसने  बेटे जगन से कहा जा  बेटा पता लगा के तो आ  पोस्ट ऑफिस में कितना पैसा जमा हुआ है ,  जगन  ने बात अनसुनी कर दी दो -तीन बार बोलने के बाद जगन जाने को राजी  हुआ। दो दिन बीत  जाने के बाद जगन माँ से बोला माँ पोस्ट ऑफिस का पास बुक तो मिल ही नहीं रहा है जागृति को लगा जैसे उसके पैर के नीचे से किसी ने जमीन ही खींच ली हैं। बेचारी ने फिर से एक बार खोजा पर पास बुक कही नहीं था ,  फिर वो पोस्ट ऑफिस गयी पर वहाँ भी पास बुक का नंबर याद नहीं होने क कारण  कुछ  पता चल नहीं रहा था। जगन भी पूछने पर गोल मटोल जवाब दे रहा था। पोस्ट ऑफिस के कहने पर उसने थाने में F.I.R और कोर्ट में AFFIDAVIT  भी करवा ली पर पैसे का कुछ पता चल नहीं रह था। फिर एक दिन पोस्ट मास्टर ने बताया  की बहुत दिन से उसके खाते   में पैसे जमा ही नहीं हो रहे थे। बेचारी को सहसा साँप सूँघ गया उसे समझ ही नहीं आ रहा था की उसके पैसे कहा गए जबकि को हर महीने जगन को पैसे देती थी. एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ की यह हो क्या रहा है पर बहुत समझाने और  लगाने के बाद उसे पता चला की उसका बेटा जगन उसकी कमाई का २०० रुपया अपने दोस्तों में उड़ा देता था अब जागृति किसको शिकायत  करे और किसे फ़रियाद करे। इस घटना के बाद जगन भी घर छोड़ के चला गया था। बेचारी जागृति अपनी ममता को ठगा  सा महसूस कर  रही थी और  अपने और अपनी बेटी के  भविष्य  की चिंता करते हुए  झाड़ू  बर्तन के काम पर चली गयी।