Monday 28 September 2015

ठगी हुई ममता


जागृति  जो की घर घर झाड़ू बर्तन  का काम करती है ने २०० रुपए  महीने का आवर्धिक जमा (R.D ) पोस्ट ऑफिस में  करवाया था। जागृति के पति का निधन  उस  समय हो गया था जब उसके ३ बच्चे जगन ,मोहन और राधिका बहुत छोटे थे।  बेचारी इतना पढ़ी लिखी भी नहीं थी की अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सके  काफी कोशिशों के बाद भरण पोषण होता था। अब तो जागृति के बच्चे भी बड़े हो गए थे अब वो भी थोड़ा बहुत कमा के लाते थे बेटी भी  बड़ी हो रही थी जिसकी शादी के लिए जागृति ने पोस्ट ऑफिस में (R D) करवाया था। पढ़ी लिखी न होने के कारण बड़ा बेटा जगन ही पोस्ट  ऑफिस में पैसे  जमा करता था। जागृति अपनी कमाई जो की बमुश्किल से १५०० रूपए  की थी  में से २००  रूपए बचाकर अपने बेटे  जगन को जमा करने के लिए देती   थी। कुछ साल बाद बेटी राधिका के लिए  बहुत  अच्छा रिश्ता आया लड़का सरकारी  स्कूल में चपरासी  था  दहेज़ की भी कोई मांग न  थी। जागृति आज बहुत  खुश थी पर उसको एक चिंता भी थी की शादी का  खर्चा  कहा से आयेगा। सहसा उसे याद आया की उसने पोस्ट ऑफिस में R D करवाया हुआ है ,उसने  बेटे जगन से कहा जा  बेटा पता लगा के तो आ  पोस्ट ऑफिस में कितना पैसा जमा हुआ है ,  जगन  ने बात अनसुनी कर दी दो -तीन बार बोलने के बाद जगन जाने को राजी  हुआ। दो दिन बीत  जाने के बाद जगन माँ से बोला माँ पोस्ट ऑफिस का पास बुक तो मिल ही नहीं रहा है जागृति को लगा जैसे उसके पैर के नीचे से किसी ने जमीन ही खींच ली हैं। बेचारी ने फिर से एक बार खोजा पर पास बुक कही नहीं था ,  फिर वो पोस्ट ऑफिस गयी पर वहाँ भी पास बुक का नंबर याद नहीं होने क कारण  कुछ  पता चल नहीं रहा था। जगन भी पूछने पर गोल मटोल जवाब दे रहा था। पोस्ट ऑफिस के कहने पर उसने थाने में F.I.R और कोर्ट में AFFIDAVIT  भी करवा ली पर पैसे का कुछ पता चल नहीं रह था। फिर एक दिन पोस्ट मास्टर ने बताया  की बहुत दिन से उसके खाते   में पैसे जमा ही नहीं हो रहे थे। बेचारी को सहसा साँप सूँघ गया उसे समझ ही नहीं आ रहा था की उसके पैसे कहा गए जबकि को हर महीने जगन को पैसे देती थी. एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ की यह हो क्या रहा है पर बहुत समझाने और  लगाने के बाद उसे पता चला की उसका बेटा जगन उसकी कमाई का २०० रुपया अपने दोस्तों में उड़ा देता था अब जागृति किसको शिकायत  करे और किसे फ़रियाद करे। इस घटना के बाद जगन भी घर छोड़ के चला गया था। बेचारी जागृति अपनी ममता को ठगा  सा महसूस कर  रही थी और  अपने और अपनी बेटी के  भविष्य  की चिंता करते हुए  झाड़ू  बर्तन के काम पर चली गयी।                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

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